ग़ज़ल
——ग़ज़ल——
सीख माँ ने दिया सबकी कर बंदना
दिल दुखाने की करना नहीं कल्पना
बा समर हो दरख़्तों की डाली अगर
झुक ही जाते हैं वो छोड़ करके अना
जानते हैं कि जीवन है बस चार दिन
इसके अंज़ाम में होना है बस फ़ना
जी रहे हैं जो ग़फ़लत में ही आज़ तक
आओ सच का दिखाएँ उन्हें आइना
साथ रहने में ताक़त बढ़े चौगुनी
फोड़ सकता नहीं भाड़ अकेले चना
सीख़ दी है बुजुर्गों ने “प्रीतम” मुझे
गैर कोई नहीं सबसे रख आशना
प्रीतम राठौर भिनगाई