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19 Dec 2018 · 1 min read

ग़ज़ल

—–ग़ज़ल—–
वो कहती मुझे बे-मज़ा आदमी हूँ
उसे क्या पता है मैं क्या आदमी हूँ

इसी वास्ते मैं”””””डरूँ लड़कियों से
कि बीवी से अपनी पिटा आदमी हूँ

नही हो गया “”क़द मेरा यूँ ही छोटा
बहुत दूर तक “””मैं चला आदमी हूँ

न जाओ मेरी शक़्लो-सूरत पे यारों
मैं ज़िन्दा हूँ लेकिन मरा आदमी हूँ

नहीं जानता “””””हूँ कोई होशियारी
जहां वालों मैं “अनपढ़ा आदमी हूँ

नचाती है उँगली पे बीवीऐ “प्रीतम”
हाँ इक दिन तो मुर्गा बना आदमी हूँ

प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)

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