ग़ज़ल
——-ग़ज़ल—–
मैं दुनिया-ए-उल्फ़त पला आदमी हूँ
ये किसने””” कहा मैं बड़ा आदमी हूँ
कोई हँस के बोले तो हो जाऊँ उसका
मैं हर तौर से “””””बा-वफ़ा आदमी हूँ
कसर कुछ न छोड़ी थी इस मुफ़लिसी ने
सितम लाखों सहकर जिया आदमी हूँ
जो मिलता हैं मुझसे किसी आरज़ू से
मैं किससे कहूँ ग़मज़दा आदमी हूँ
ज़माने से अच्छी तरह से हूँ वाक़िफ़
न समझो “””””””यहाँ मैं नया आदमी हूँ
बुलंदी पे जिसको बिठाया था “प्रीतम”
वही मुझको””””””कहता बुरा आदमी हूँ
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)