ग़ज़ल: हद है !
बे-बहर ग़ज़ल : हद है !
//दिनेश एल० “जैहिंद”
बार बार की है जुमले बाजी, हद है
कितना समझाए उसे काजी, हद है
ना माने कभी वो मन की करता है
की है सिर्फ उसने रंग बाजी, हद है
मना-मना, हारा ना मानी घरवाली
हाय, न हुई कभी वह राजी, हद है
बीत गई पूरी रात परसो की है बात
माँगी मैंने उससे चुम्मी नादी, हद है
हद की भी हद ये, उस पर है चौहद
पर फिर भी कहा मुझे पाजी, हद है
यूँ आँख तरेरना था मुझ पर हरदम
फिर तुमने क्यों की ये शादी, हद है
मैं मियाँ हूँ तू मेरी बीवी, सब जाने
आई कहाँ से बीच में माँजी, हद है
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दिनेश एल० “जैहिंद”
19/12/2019