ग़ज़ल : ….. सुलगता हुआ दर्द देखा है ।
….. सुलगता हुआ दर्द देखा है ।
तुम्हारे दर्द में हमने हमारा दर्द देखा है ।
तुम्हारे फ़र्ज़ में हमने ख़ज़ाने फ़र्ज़ देखा है ।।
वो सारे मर्ज़ का कोई-न-कोई खोजते रास्ता,
और यहाँ मर्ज़ पर हमने तो ढेरों बर्फ देखा है ।
परवाने इश्क़ में मोहब्बते जोश पाले हैं,
आकाओं पर मगर हमने जमा कुछ गर्द देखा है ।
सूखे की मार कभी तो कभी बारिशों की आफ़त,
किसने कृषकों का सुलगता हुआ दर्द देखा है ।
“जैहिंद’’ अब ग़ज़ल कहने की इस आदत को छोड़ो,
ग़ज़ल वालों में अब हमने हज़ारों मर्ज़ देखा है ।
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दिनेश एल० “जैहिंद”
20. 06. 2017