ग़ज़ल – सलीका ज़िन्दगी का
मुहब्बत में मज़ा तो दिल की क़ुर्बानी से आया है
कि मिटने की कसम है दिल तो मनमानी से आया है।
पियो तुम जाम आँखों से कि मयखाने में तुम डोलो
कि असली स्वाद जीने का तो बस पानी से आया है।
मिले धोखे उन्हीं से जो कभी होते थे अपने भी
सलीका ज़िन्दगी का दिल की नादानी से आया है ।
न कुछ हम सीखते गर तुम न दिल को रौंदते मेरा
तुझे पहचानना अब दिल की वीरानी से आया है।
समन्दर नाचता है बांध कर दरिया के पग पायल
मधुर संगीत दोनों की प्रेम कहानी से आया है।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
©