ग़ज़ल सगीर
तुमसे कब बे खबर रहा हूं मैं।
सिर्फ रश्के सफर रहा हूं मैं।
मैं कहानी का इक्तीबास सही।
तज़किरे में मगर रहा हूं मैं।
सच बताऊं,जो मान जाओ तुम।
बिन तेरे खा़क भर रहा हूं मैं।
शुक्रिया तेरा,ज़र्रा नवाजी़ तेरी।
बिन तेरे आहें भर रहा हूं मैं।
माहे अंजुम है सारे गर्दिश में।
मंजि़लों से उतर रहा हूं मैं।
सब मुझे आज भूल बैठे हैं।
सबका पहले हुनर रहा हूं मैं।
तुमने पढ़कर भुला दिया लेकिन।
सफ़हे़ अव्वल खबर रहा हूं मैं।
मानता हूं मैं आज खंडहर हूं।
पहले हंसता सा घर रहा हूं मैं।
मैं हवादिस के साथ जीता हूं।
ना बुझे वह शरर रहा हूं मैं।
एक रब से ही सिर्फ डरता हूं।
इसलिए ही निडर रहा हूं मैं।
सगी़र आसान उसे लगता है।
बहुत मुश्किल मगर रहा हूं मैं।