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13 Aug 2024 · 1 min read

आ जा अब तो शाम का मंज़र भी धुँधला हो गया

आ जा अब तो शाम का मंज़र भी धुँधला हो गया
रास्तों ने मूँद ली आँखें अंधेरा हो गया

बैठ कर जिस के किनारे तू ने खाई थी क़सम
वो नदी कहती है तेरा वा’दा झूठा हो गया

कौन आया धूप सा उजला मेरे घर में जिसे
देख कर दीवारों का भी रंग गोरा हो गया

तोड़ के अपने किनारे उस से मिलने चल पड़ा
इक समुंदर प्यार में दरिया के अंधा हो गया

शाख़ से पलकों की ख़्वाबों के परिंदे उड़ गए
रह गईं वीरान आँखें दिल भी सूना हो गया

है गुमाँ मुझ को कि आँसू मेरे मोती बन गए
है यक़ीं उस को कि दामन उस का मैला हो गया

कर लिया हालात से समझौता उस ने दोस्तों
बे-दिली से ही सही पर वो किसी का हो गया

मौसमों में अब कहाँ पहले सी वो रंगीनियाँ
बिन तुम्हारे ज़िंदगी का रंग फीका हो गया

जैसे पुश्तैनी हवेली क़र्ज़े में नीलाम हो
ऐसे हालातों में इक दिन दिल का सौदा हो गया

संदीप ठाकुर

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