क्या सितारों को तका है – ग़ज़ल – संदीप ठाकुर
क्या सितारों को तका है रात भर पल पल कभी
चाँद के गालों पे पड़ते देखे हैं डिम्पल कभी
नाम मेरा याद करके चुस्कियों के बीच में
क्या हुई है चाय के कप में तिरे हलचल कभी
जानता हूँ उम्र भर तू साथ दे सकता नहीं
पर ज़रा सी दूर तक तो साथ मेरे चल कभी
सर्च करना है मुझे बे-कार इंटरनेट पर
धड़कनों में अपनी मेरा नाम कर गूगल कभी
उँगलियों से कुछ सरकता सा लगे है आज तक
छू गया था हाथ से इक रेशमी आँचल कभी
घुंघरूओं के सुर जगेंगे छत की हर मुंडेर से
सीढ़ियाँ चढ़ ले वो गर पहने हुए पायल कभी
चंद किरनें धूप की छन कर हुई बस साँवली
रोक पाए पर कहाँ सूरज को ये बादल कभी
संदीप ठाकुर
Sandeep Thakur