सांसों से आईने पर क्या लिखते हो।
ठुकरा दिया है 'कल' ने आज मुझको
इनको साधे सब सधें, न्यारे इनके ठाट।
बोये बीज बबूल आम कहाँ से होय🙏🙏
🌹मेरे जज़्बात, मेरे अल्फ़ाज़🌹
*वर्तमान को स्वप्न कहें , या बीते कल को सपना (गीत)*
हैं श्री राम करूणानिधान जन जन तक पहुंचे करुणाई।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
विद्यार्थी को तनाव थका देता है पढ़ाई नही थकाती
मैं इंकलाब यहाँ पर ला दूँगा
मेरी साँसों में उतर कर सनम तुम से हम तक आओ।
वह लोग जिनके रास्ते कई होते हैं......
सच तो आज कुछ भी नहीं हैं।
हम रात भर यूहीं तड़पते रहे
विषम परिस्थितियों से डरना नहीं,
मगर अब मैं शब्दों को निगलने लगा हूँ
23/81.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*