ग़ज़ल:-खोजने निकला मैं किस्मत का सितारा रात में…
खोजने निकला मैं किस्मत का सितारा रात में।
दिन के हिस्से में गया सूरज तभी ख़ैरात में।।
तप रहा उसका बदन जैसे शरारा आग का।
हो सितारों से अलग आ ही गया औक़ात में।।
हर जगह पश्चिम का पहरा देशी अब कुछ भी नहीं।
फर्क़ भी दिखता नहीं अब शह्र या देहात में।।
ख़्वाब लेकर आएगा दरिया किनारों के लिए।
वो बहा ले जाएगा अब देखना जज्बात में।
ले इरादा जीतने का ‘कल्प’ बदलेगा ज़हां।
हौसलों में जान होती दम कहां इस्पात में।।
✍ अरविंद राजपूत ‘कल्प’