ग़ज़ल (वक्त तो बे *लगाम* होता ह)
ग़ज़ल*
वक्त तो बे लगाम होता है
इन्सां उसका ग़ुलाम होता है
लिख रहे हैं ग़ज़ल सभी देखो
ख़ास मेरा क़लाम होता है
ग़ुल महकते सदा ,वही यारो
जिनका काँटों में धाम होता है
लोग करते ग़ुरूर इतना क्यों
काम पल में तमाम होता है
काम जिसके रहे सदा सच्चे
उसका ऊंचा मक़ाम होता है
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डॉ .रागिनी शर्मा
इंदौर