ग़ज़ल : ….. ले सिसकियाँ रोता रहा !
…… ले सिसकियाँ रोता रहा !
2122 2122 212
दिल वही खामोशियाँ बोता रहा ।
तन मिरा तन्हाइयाँ ढोता रहा ।।
कब खबर उनको मिरे हालात की,
रात भर ले सिसकियाँ रोता रहा ।।
करवटें मैं रात भर ले-ले जगा,,
फिर मिरा सनम रतिया सोता रहा ।।
क्या पता उनको जवानी बेरुखी,,
संग मिरे अब क्या-क्या होता रहा ।।
फिक्र कब ‘जैहिंद’ की शमा को यहाँ,
अब तो मैं निशानियाँ खोता रहा ।।
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दिनेश एल० “जैहिंद”
20. 05. 2017