ग़ज़ल- रोटी और मकान नहीं है
ग़ज़ल- रोटी और मकान नहीं है
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रोटी और मकान नहीं है
जीवन यह आसान नहीं है
खुद की बदहाली पर सोचो
रोता कौन किसान नहीं है
फुटपाथों पर सोने वाला
बोलो क्या इंसान नहीं है?
रोजी-रोटी ढूँढ रहा जो
वह कोई नादान नहीं है
चूल्हे में है आग भले पर
चावल और पिसान नहीं है
हाय कुपोषित बच्चों में तो
लगती जैसे जान नहीं है
भीख माँगते बच्चों पर भी
सरकारों का ध्यान नहीं है
जो बैठा “आकाश” शिखर पर
वह कोई भगवान नहीं है
– आकाश महेशपुरी
दिनांक- 06/11/2019