ग़ज़ल:– रूह से रूह जब मिलाओगे ।
ग़ज़ल:– रूह से रूह जब मिलाओगे ।
✍? अनुज तिवारी “इंदवार”
मतला
रूह से रूह जब मिलाओगे ।
जिस्म का ख़्याल भूल जाओगे ।
हुस्न-ए-मतला
जब कभी आप आजमाओगे ।
कठघरे में ही प्यार पाओगे ।
शेर
याद मेरी तुम्हें सताएगी ,
जाम होठों से जब लगाओगे ।
तेरी नज्रों को पढ़ लिया हमनें ,
बात होठों में क्या दबाओगे ।
प्यार होगा तो ये समझ लेना ,
बेवजह आप मुस्कुराओगे ।