ग़ज़ल :– ये नीर नहीं इन आँखों के !!
ग़ज़ल –: ये नीर नही इन आखों के !!
:– अनुज तिवारी “इन्दवार”
हम डूब रहे मझधारे पर मुश्किल से भरे किनारे है !
ये नीर नही हैं आखों के ये तो गिरते अन्गारे हैं !!
हँस कर पार किये थे हम बडे-बडे तूफानो को !
अपनो ने जख्मी किये हर लम्हे यहां गवारे हैं!!
आज भँवर मे फसे-फसे हम चीख रहे चिल्ला रहे !
बचना शायद मुश्किल होगा ये नफरत के गलियारे है !!
समझ रहे थे जैसे सावन शीतल निर्मल मनभावन !
ये तपती तेज दुपहरी मे ज्वाला की बौछारें है !!
नातों के नाजुक ये बंधन ढह ना जाये ठोकर से !
जरा सम्हल कर रहना तुम ये सीसे की दीवारे हैं !!