ग़ज़ल- मेरे दिल की चाहतों ने
ग़ज़ल- मेरे दिल की चाहतों ने
मुझे बारहा रुलाया मेरे दिल की चाहतों ने।
हर बार दिया आसरा मुझे रब की रहमतों ने।।
उसने भेजा है इस जहां में आदमी के रूप में।
कितना बदल डाला है इंसान को इन जातों ने।।
यह सोचकर के हमने उठायी है अब तो क़लम।
जुबां कह न सकी बयां कर दी वो बात इन ख़तों ने।।
हम एक मां के लाल है साथ पले और बढ़े है।
हमें मिलने नहीं दिया आपस की नफ़रतों ने।
अश्क़ अब इन आंखों, नींद क्यों आती नहीं।
फिर शिकायत की है ‘राना’ से तमाम रातों ने।।
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© राजीव नामदेव “राना लिधौरी”,टीकमगढ़
संपादक-“आकांक्षा” हिंदी पत्रिका
संपादक- ‘अनुश्रुति’ बुंदेली पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
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