ग़ज़ल में
मिली हो दाद सबकी जब ग़ज़ल में
सभी का दर्द है मतलब ग़ज़ल में
कभी भी डूबकर गर तुम सुनोगे
मिलेगा अक्स कोई तब ग़ज़ल में
लगे हैं मुँह फिराने लोग हमसे
खरी हमने भी कह दी जब ग़ज़ल में
ज़माने भर से तो मिलते रहे हैं
मगर खुद से मिले हैं कब ग़ज़ल में
मुहब्बत, दर्द सुनते थे मगर अब
सुनाई दे रहा मज़हब ग़ज़ल में
मिलेंगे ऐसे भी जग में सुखनवर
पता जिनको नहीं करतब ग़ज़ल में
मयस्सर हो ये मकसद शायरी का
अगर शामिल हो जाएं सब ग़ज़ल में
हसीनों से सजी ये बज़्म ‘सागर’
मुहब्बत बढ़ रही है अब ग़ज़ल में