ग़ज़ल : ….. बूढ़ा भी जवानी सोचता है ।
….. बूढ़ा भी जवानी सोचता है ।
वाह ! बूढ़ा भी जवानी सोचता है ।
देश अपना तो* कुरबानी सोचता है ।।
सब्र उसको है नहीं पाया जो* उसने,,
उफ्फ ! सूरत वो सुहानी सोचता है ।।
रोज ये अखबार वाला चाहता क्या,,
रोज अब नई* नई* कहानी सोचता है ।।
है गजब काला कलूटा भी तो* यारो,,
आज कल सुन्दर वो* रानी सोचता है ।।
दौर आया अब हमारा खूब अच्छा,,
ये जमाना भी* मरदानी सोचता है ।।
देख ये कौवा भी* कोयल की तरह ही,,
अब तो* मीठी मधुर बानी सोचता है ।।
हर नया शौकीन तो क्रिकेट का अब,,
खेल मन भावन तूफ़ानी सोचता है ।।
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दिनेश एल० “जैहिंद”
28. 09. 2017