ग़ज़ल – बदगुमानी बदल दे
न किस्मत लिखे मुंह जबानी बदल दे
कभी तो ख़ुदा ज़िन्दगानी बदल दे।
लो आए खुशी के ये दिन और रातें
जो रातें थीं काली आसमानी बदल दे।
हुई खार अश्कों से दिल के भंवर में
ख़ुदा इस समन्दर का पानी बदल दे।
समझना न चाहे भरोसे के काबिल
अगर हो सके बदगुमानी बदल दे।
तुझी को बनाया है अब रहनुमा भी
मेरी ज़िन्दगी की कहानी बदल दे।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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