ग़ज़ल/नज़्म — सोच सकारात्मक
(ग़ज़ल/नज़्म — सोच सकारात्मक)
खामखां दिलेरी दिखाने में, कोई बड़ाई नहीं,
बेवजह ही जान गंवाने में, कोई भलाई नहीं ।
दुश्मन कर रहा कोशिशें, तेरे घर में सेंध की,
ढ़ील देखी नहीं कि उसने, धार पनाई नहीं ।
ये बाहर खराब हवा है, खुले में तू मत जा,
निशाना साध के बैठा है, वो तेरा भाई नहीं ।
समय बुरा है मगर ये, कुछ सिखा भी रहा,
कह नहीं सकते इसने, दूरियाँ मिटाई नहीं ।
सूखी रोटी मिले खाने में, साथ में जो गुड़ हो,
मत कहना मेरी थाली में, कोई मिठाई नहीं ।
तरसे फुर्सत के पलों को, हम मशीनी दौर में,
वो महफ़िलें बुरी रही जो, घर में सजाई नहीं ।
पक्ष-विपक्ष की सियासतें, एक सी हर दफा,
ठीक है जो कमजोरी उन्हें, तूने बनाई नहीं ।
मीडिया से दूर “अनिल”, सोच सकारात्मक,
हौसलों को किसी के ये, बीमारी हराई नहीं ।
©✍?15/05/2021
अनिल कुमार “खोखर”
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