ग़ज़ल/नज़्म – वो ही वैलेंटाइन डे था
(ग़ज़ल/नज़्म – वो ही वैलेंटाइन डे था)
एक दिन मैं खुद में बड़ा सा, जहां जोड़ के आया था,
अपने दिल की धड़कनों में, आसमां जोड़ के आया था ।
पास आने की मनुहार की थी किसी ने, छूके मेरा हाथ हौले से,
उसके माथे पे तब मैं बहुत से अपने, निशां जोड़ के आया था ।
उसका मौन उस मुलाकात में, कर गया था अहसास बयां,
उसके थिरकते लबों से बोलती, दास्तां जोड़ के आया था ।
चौदह फरवरी है, वैलेंटाइन डे है, दोस्त आज याद दिला रहे,
उनको खबर है के तारीखों का मैं, कारवाँ जोड़ के आया था ।
हर दिन यूँ तो अच्छा है “खोखर”, पर वो दिन कुछ अलग ही था,
जो उसके दिल से अपना प्यार मैं, जवाँ जोड़ के आया था ।
(मनुहार = प्रार्थना, विनती, खुशामद)
(दास्ताँ = बीती बातें, विस्तार में वर्णन, कथा, कहानी, अफसाना)
(कारवां = काफिला, समूह, श्रृंखला)
©✍?14/02/2021
अनिल कुमार (खोखर)
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