ग़ज़ल/नज़्म – मद्देनजर रखे
सब उसके जज़्बात मद्देनजर रखे,
जहां के सवालात मद्देनजर रखे ।
ये गाँव का प्यार है सरेआम ना हो,
छोटे-बड़े झंझावात मद्देनजर रखे ।
हमारे बीच क्या मैं जानूं वो जाने,
उसके सारे हालात मद्देनजर रखे ।
ताला न लगे जो उसकी मुस्कान पे,
ज़माने के इल्ज़ामात मद्देनजर रखे ।
गुफ्तगू में उसे देर लग रही तो लगे,
बस उसके खयालात मद्देनजर रखे ।
छोटे-छोटे मिलन बनें कायनात से,
कैसी हो ये मुलाकात मद्देनजर रखे ।
प्यार की डगर में जल्दी उगते काँटे,
आशिकों के तजरबात मद्देनजर रखे ।
पल-पल चाहतों के दिल पे छपते रहे,
न हों पुराने कागज़ात मद्देनजर रखे ।
जुस्तजू उसका मुसाहिब रहे “खोखर”
दोनों दिलों के ताल्लुकात मद्देनजर रखे ।
(मद्देनजर = जो नज़र या निगाह के सामने हो)
(खयालात = ख्याल, अनेक विचार, विचारधारा)
(कायनात = सृष्टि, जगत, ब्रह्मांड, संसार, विश्व)
(तजरबात = तजुर्बात, तजुर्बा का बहुवचन, अनुभव, परख)
(जुस्तजू = आकांक्षा, इच्छा)
(मुसाहिब = कुलीन, सम्मानित, बड़े व्यक्ति के पास उठने-बैठने वाला, राजा का परामर्शदाता, ख़ुशामदी)
(ताल्लुकात = मेल-जोल, सम्बन्ध)
©✍?26/05/2021
अनिल कुमार (खोखर)
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