ग़ज़ल/नज़्म – एक वो दोस्त ही तो है जो हर जगहा याद आती है
एक वो दोस्त ही तो है जो हर जगहा याद आती है,
कभी मिल ना पाऊँ तो भी दिल के तार बज़ाती है।
कितनी बार सुनता हूँ उसे सोते-सोते भी अकेले में,
पता नहीं लगता कब मन के दरवाजे खटखटाती है।
महकने लगती हैं हवाएं टकरा के उसकी जुल्फों से,
यही सोचने लगती हैं कि वो कौन सा इत्र लगाती है।
चाँद ने भी तो हाथ फैलाया होगा रोशन उससे होने को,
वरना आधा होकर रोशनी उसकी कैसे मीठी आती है।
वो स्वीटी है या क्यूट डॉल या एक अप्सरा ‘अनिल’,
हर पल सबके दिल में सीरत उसकी ही लहराती है।
(सीरत = स्वभाव, प्रकृति)
©✍️ स्वरचित
अनिल कुमार ‘अनिल’
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