ग़ज़ल-दिल में दुनिया की पीर
दिल में दुनिया की पीर ज़िंदा है
यानि मेरा ज़मीर ज़िंदा है
कोई हिन्दू है कोई मुस्लिम है
कैसे कह दूँ कबीर ज़िंदा है
तुझको देखा तो बस यही सोचा
अब भी राँझे की हीर ज़िंदा है
जिसके मिसरों मे ईश्क महके है
उसकी ग़ज़लों में मीर ज़िंदा है
प्यार कैसे दिलों में पनपेगा
सरहदों की लकीर ज़िंदा है
बादशाहत मुझे नहीं आती
मेरे भीतर फ़क़ीर ज़िंदा है
तेरी आँखों की ज़द में हूँ कब से
क्या तेरा कोई तीर ज़िंदा है
मेरी आँखों में अश्क़ हैं अब भी
यानि नदियों में नीर ज़िन्दा है