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13 May 2024 · 1 min read

ग़ज़ल-दर्द पुराने निकले

उलझन को सुलझाने निकले
हम ख़ुद को दफ़नाने निकले

नए नए अल्फ़ाज़ पहन कर
कितने दर्द पुराने निकले

राम-राज के धोबी सारे
सबके मुँह से ताने निकले

पुरस्कार समझा था जिनको
वो सारे हर्जाने निकले

सुख-दुख जीवन की चादर के
यारो ताने-बाने निकले

हम भी कम हुशियार नहीं थे
तुम भी बहुत सयाने निकले

असली तो गुमनाम हुए हैं
नकली जाने-माने निकले

सच को सच कहने की ठानी
‘शाहिद’ भी दीवाने निकले

Language: Hindi
130 Views

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