ग़ज़ल:- तेरे सम्मान की ख़ातिर ग़ज़ल कहना पड़ेगी अब…
तेरे सम्मान की ख़ातिर ग़ज़ल कहना पड़ेगी अब।
मेरे ईमान की ख़ातिर ग़ज़ल कहना पड़ेगी अब।।
किये ऐलान की ख़ातिर मिले अनुदान की ख़ातिर।
हुए नुक़सान की ख़ातिर ग़ज़ल कहना पड़ेगी अब।।
कभी सुल्तान की ख़ातिर, कभी फ़रमान की ख़ातिर।
मियां दरबान की ख़ातिर ग़ज़ल कहना पड़ेगी अब।।
तुम्हारी आन की ख़ातिर, हमारी ज़ान की ख़ातिर।
किसकी शान की ख़ातिर, ग़ज़ल कहना पड़ेगी अब।।
कभी अभियान की ख़ातिर, कभी अभिमान की ख़ातिर।
किसी के मान की ख़ातिर ग़ज़ल कहना पड़ेगी अब।।
कभी सैतान की ख़ातिर,कभी भगवान की ख़ातिर।
कभी इंसान की ख़ातिर, ग़ज़ल कहना पड़ेगी अब।।
कभी मेहमान की ख़ातिर, कभी पहचान की ख़ातिर।
कभी गुणगान की ख़ातिर, ग़ज़ल कहना पड़ेगी अब।।
कभी रमज़ान की ख़ातिर कभी कुर’आन की ख़ातिर।
कभी रिज़वान की ख़ातिर ग़ज़ल कहना पड़ेगी अब।।
नहीं ख़ातिर किसी की ‘कल्प’ ग़ज़लें तुम कहीं कहना।
सुख़न के ज्ञान की ख़ातिर ग़ज़ल कहना पड़ेगी अब।।
✍ अरविंद राजपूत ‘कल्प’