ग़ज़ल -टूटा है दिल का आइना हुस्नो ज़माल में
शबनम चमक रही थी जो पलक-ए- रिसाल में
मोती दमक रहे वही मेरे रुमाल में
पत्थर में दम कहां थी जो शीशे को तोड़ता
टूटा है दिल का आइना हुस्नो ज़माल में
बूंदों के मज़मु’ए से समंदर तो भर गया
कितने मरे हैं प्यास से सागर विशाल में
कैसे करूंगा पास किसी एग्ज़ाम को
उलझा हुआ हूं मैं अभी पहले सवाल में
दे तो रहे हैं दर्स हमें मग़फ़िरत का पर
पीर-ओ-फक़ीर ख़ुद फंसे दुनिया के जाल में
✍ अरविंद राजपूत ‘कल्प’