Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
5 Feb 2023 · 1 min read

ग़ज़ल चाह जी भर कर मुझे

कह उठा मन, मिल गया है चाहतों का घर मुझे।
उसकी आँखों में दिखा जब प्यार का सागर मुझे।

मुस्कुरा कर कह रही है आज मुझसे ज़िंदगी,
चार पल की ज़िंदगी है चाह जी भर कर मुझे।

एक पल भी है न ऐसा जिसको अपना कह सकूँ,
ढूँढते रहते हैं ये घर और ये दफ़्तर मुझे।

पत्थरों के साथ रहकर आदमी पत्थर हुआ,
याद फिर आने लगा है गाँव का छप्पर मुझे।

ख़त्म होती ही नहीं हैं जिससे बातें प्यार की,
दिल में उसके कौन है मिलता नहीं उत्तर मुझे।

Language: Hindi
240 Views

You may also like these posts

अदाकारियां
अदाकारियां
Surinder blackpen
तराना
तराना
Mamta Rani
गांधीजी की नीतियों के विरोधी थे ‘ सुभाष ’
गांधीजी की नीतियों के विरोधी थे ‘ सुभाष ’
कवि रमेशराज
तुम मेरे हो
तुम मेरे हो
Rambali Mishra
#तुम्हारा अभागा
#तुम्हारा अभागा
Amulyaa Ratan
विचार
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
न रोको तुम किसी को भी....
न रोको तुम किसी को भी....
डॉ.सीमा अग्रवाल
जय श्री राम
जय श्री राम
Dr Archana Gupta
ज़िंदगी है,
ज़िंदगी है,
पूर्वार्थ
🙅आज का दोहा🙅
🙅आज का दोहा🙅
*प्रणय*
सवर्ण, अवर्ण और बसंत
सवर्ण, अवर्ण और बसंत
Dr MusafiR BaithA
पूरा सभ्य समाज
पूरा सभ्य समाज
RAMESH SHARMA
ग़ज़ल _ मुकद्दर की पहेली 🥰
ग़ज़ल _ मुकद्दर की पहेली 🥰
Neelofar Khan
"तरीका"
Dr. Kishan tandon kranti
सरकार हैं हम
सरकार हैं हम
pravin sharma
रोला छंद
रोला छंद
seema sharma
छोटी
छोटी
इंजी. संजय श्रीवास्तव
पर्यावरण में मचती ये हलचल
पर्यावरण में मचती ये हलचल
Buddha Prakash
पहले खुद संभलिए,
पहले खुद संभलिए,
Jyoti Roshni
पास आए हो तुम जेड गीत
पास आए हो तुम जेड गीत
शिवम राव मणि
मेरा स्वप्नलोक
मेरा स्वप्नलोक
Jeewan Singh 'जीवनसवारो'
शरारत करती है
शरारत करती है
हिमांशु Kulshrestha
फिर जल गया दीया कोई
फिर जल गया दीया कोई
सोनू हंस
मैं खोया था जिसकी यादों में,
मैं खोया था जिसकी यादों में,
Sunny kumar kabira
जीवन है चलने का नाम
जीवन है चलने का नाम
Ram Krishan Rastogi
कल तो निर्मम काल है ,
कल तो निर्मम काल है ,
sushil sarna
छाव का एहसास
छाव का एहसास
Akash RC Sharma
Innocent love
Innocent love
Shyam Sundar Subramanian
पधारो नंद के लाला
पधारो नंद के लाला
Sukeshini Budhawne
ईश्वर शरण सिंघल (मुक्तक)
ईश्वर शरण सिंघल (मुक्तक)
Ravi Prakash
Loading...