– ग़ज़ल ( चंद अश’आर )
ग़ज़ल ( चंद अश’आर ) 🌷
दाग़ बेवफ़ाई का छिपाने लगे हैं ।
रंग वफ़ा के ……… उड़ाने लगे हैं ।।
बैठे हैं रेत पर सहरा की लेकिन ।
ख़्वाब समंदर के दिखाने लगे हैं ।।
तीरगी हिज्र की हटाने की ख़ातिर ।
चराग़ वस्ल के …… जलाने लगे हैं ।।
चाहत के आँगन से .. ख़ुद ही अब ।
शजर मायूसी का … हटाने लगे हैं ।।
“काज़ी” उनकी ख़ुशियों की ख़ातिर ।
ग़मों को अपने ……. बढ़ाने लगे हैं ।।
©डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
©काज़ीकीक़लम
28/3/2 , अहिल्या पल्टन , इकबाल कालोनी
इंदौर , जिला – इंदौर , मध्यप्रदेश