ग़ज़ल कहूँ तो मैं ‘असद’, मुझमे बसते ‘मीर’ ग़ज़ल कहूँ तो मैं ‘असद’, मुझमे बसते ‘मीर’ दोहा जब कहने लगूँ, मुझमें संत कबीर