ग़ज़ल : ( एक अगली ग़ज़ल में…. )
ग़ज़ल : ( एक अगली ग़ज़ल में…. )
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एक अगली ग़ज़ल में सारी बातें कह जाता ।
कहने को उससे आगे कुछ भी न रह जाता ।।
उनकी ओर से गर कुछ संकेत मिली होती ।
तो मैं भावनाओं के समुंदर में ही बह जाता ।।
करने को तो महीनों भर इंतज़ार कर लूंगा ।
पर कदाचित् मेरे पक्ष में वो कुछ कह जाता ।।
शुक्र है कि सारी गलतियाॅं माफ़ कर दी उसने ।
वरना जो भी सजा मिलती, चुपचाप सह जाता ।।
किस्मत मेहरबान थी ‘अजित’ तुझपे अभी तक ।
वरना ये छोटा सा महल तेरा कब का ढह जाता ।।
स्वरचित एवं मौलिक ।
सर्वाधिकार सुरक्षित ।
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : 08 दिसंबर, 2021.
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