ग़ज़ल :– आँगन में आत्मसमर्पण देखा !!
ग़ज़ल –: आँगन में आत्मसमर्पण देखा !!
गज़लकार–: अनुज तिवारी “इंदवार”
आग में झुलसी दुल्हन देखा !
जितनी भी सब निर्धन देखा !!
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अम्बर के अडिग इरादों का !
आँगन में आत्मसमर्पण देखा !!
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अरमानों के मण्डप पर बैठी !
उन सांसों की उलझन देखा !!
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कहीं तड़फ़ती चूड़ी हाथों में !
कहीं खनकते कंगन देखा !!
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नम आँखों के बोझिल आँसू में !
सागर का खारापन देखा !!
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हुई प्रज्वलित लौ ज्वाला की !
जब आँखों नें दर्पण देखा !!
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कहने को दुनियाँ अपनी पर !
कहीं नहीं अपनापन देखा !!