#ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल अमन की बात करते ही जिन्हें कई बार देखा है ।
#ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल
अमन की बात करते ही, जिन्हें कई बार देखा है।
उन्हीं के हाथ लहराता, हुआ हथियार देखा है ।
नज़र जिनकी लुटाती थी, सभी पर प्यार की शबनम,
उन्हीं की आँख में जलता, हुआ अंगार देखा है ।
भुला सबको मिटा ख़ुद को, ख़ुदी में खो गया आशिक़,
नहीं ऐसा कभी हमने,किसी का प्यार देखा है ।
कभी क्या ठीक ये होगा, लगा जो मर्ज़ मज़हब का,
हवा में वायरस इसका, जहाँ बीमार देखा है ।
मशीनी बाढ़ में बहकर, किनारा खो गया जिसका,
उसी मज़दूर के घर में, घिसा औज़ार देखा है ।
नहीं बिकता यहाँ पर सच, किसी भी मोल पर अब तो,
फ़रेबी झूठ बातों से, पटा बाज़ार देखा है ।
चलो ‘अवधेश’ से मिलकर, सुनो कुछ ज्ञान की बातें,
उन्होंने आंतरिक आँखों, जगत का सार देखा है ।
©इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना
शिवपुरी, मध्य प्रदेश