गहरे ज़ख्म मिले हैं जिंदगी में…!!!!
कुछ इस तरह के गहरे ज़ख्म मिले हैं जिंदगी में…
उन्हें जीना नहीं हमें उनके बिना जीना नहीं,
आख़िर दर्दों के सिवा क्या मिला इस बंदगी में…
अस्मत लूटी जा रही है प्रेम की आड़ में,
हदें लांघ दी लोगों ने दरिंदगी में…
रूह से रूह का मिलन नसीब में मय्यसर नहीं,
शायद कुछ कमी रह गई हमारी दिल्लगी में…
मेरे अश्कों से भरा समंदर है ये दरिया,
जीना ज़रा मुश्किल है प्रेम की तिश्नगी में…
तृप्त हो जाएगा जीवन फकत आपके प्रेम से,
अज़ीज़ है वो, मुसलसल सज़दा करते हैं हम उनकी प्रेम भरी सादगी में…
करें एक रोज़ आप हमारी तन्हा मुशायरों की महफ़िल में शिरकत,
नहीं रहना अब हमें इस दिल-ए-शहर की वीरानगी में…
कशिश वफ़ा-ए-प्रेम की खींच लाए तुम्हें हमारी ओर,
कुछ लम्हों के लिए सुकून मिल जाए तुम्हारी मौजूदगी में…
राधा-कृष्ण की भांति हमारा भी प्रेम दो जिस्म एक जान का हो,
ओर मीरा की भांति बीते ये जीवन प्रेम की भक्ति और दीवानगी में…।।।।
– ज्योति खारी