गलती किसकी
सोनू एक होनहार एवं होशियार लड़का है, वह पढ़ाई मैं भी बहुत होशियार है । उसके घर में मां एक छोटे से पद पर कार्यरत शासकीय कर्मचारी है, एवं वह दमा रोग से पीड़ित है । एक छोटी बहन, एक छोटा भाई है, एवं पिता पहले शासकीय कर्मचारी थे परंतु शराब के नशे में इतना लिफ्ट थे की उन्हें ना अपने घर परिवार होश था ना रोजी रोटी का , शराब के अत्यधिक सेवन से उसना स्वभाव चिड़चिड़ा एवं लड़ाकू हो गया था, इस कारण उस उन्हें नौकरी से निकाल कर निकाल दिया था, नौकरी पूरी न होने के कारण उन्हें शासकीय पेंशन भी ना मिलती थी । वह अपने नशे के लिए बाजार में कोई काम मिल जाता उससे जो पैसा मिलता उसे वह नशे में उडा़ देता । साथ ही साथ सोनू की मां की वेतन में से लड़ झगड़ कर एवं कभी मारपीट कर पैसे ले जाकर नशे में उडा़ देता था ।
पिता की नशे की प्रवृत्ति होने के कारण घर की आर्थिक स्थति ठीक न थी, घरेलू खर्चों के लिए भी वेतन कम पड़ने लगी थी , फिर भी मां अपने बच्चों की परवरिश के लिए शासकीय नौकरी के अतिरिक्त समय में मोहल्ले के बच्चों को ट्यूशन पढा़या करती थी ।
इस प्रकार से पूरे घर का माहौल अशांत एवं चिड़चिडा़ होता जा रहा था , फिर भी ऐसे अशांत माहौल में भी सोनू अपनी पढा़ई पूरी लगन से करता रहा, इसी का परिणाम था कि वह दसवीं की बोर्ड परीक्षा में अपने जिले की प्रावीण्ता सूची में स्थान हासिल किया था ।
सोनू के प्रावीण्ता सूची में नाम आने की खुशी में मां से एक क्रिकेट बैट खरीदने की इच्छा जताई , मां ने मना किया तो सोनू जिद करने लगा, मां बेचारी क्या करती बच्चे की जिद के आगे झुकना पडा़ । सोनू का पिता यह सब देख रहा था, जैसे ही मां ने सोनू को पैसे दिए उसने सोनू से छीन लिए, परंतु मां ने उसके पिता से वापस पैसे छीन लिए, इस बात से सोनू का पिता गुस्सा हो गया, जब सोनू बाजार से जैसे ही बैट लेकर घर आया उसके पिता ने उसी बैट से सोनू की पिटाई शुरू कर दी, जिससे सोनू का एक हाथ व एक पैर टूट गया ।
धीरे-धीरे समय गुजरता गया, अब सोनू का ध्यान भी पढा़ई से हटने लगा , वह जरुरत की चीजों के लिए पिता के सामने मां से पैसे नहीं मांगता । मजबूरी वश वह अपनी आवश्यकताओं के लिए चोरी करना सीख गया , अब वह झूठ फ़रेब भी सीख गया । इस बीच सोनू का दाखिला एक शासकीय इंजीनियरिंग कालेज में हो गया ।
समय निकलता गया मां ने बहिन की शादी कम उम्र में कर दी, एवं छोटा भाई घर की अशांति के कारण घर छोड़कर भाग गया जिसका कोई अता पता न लग सका । पिता भी नशे में लिप्त होता गया और एक दिन चारपाई पर पडा़ रह गया,
मां तो खुद दमा की मरीज़ थी, वह बच्चों की परवरिश व पति के नशे की लत के कारण वह अपने लिए समय पर दवा न ले पाती थी, फिर एक दिन मां को दमा का दौरा पडा़ और वो परलोक सिधार गयी ।
मां की अचानक मृत्यू होने से सोनू की इंजीनियरिंग की पढा़ई अधूरी छूट गयी, क्योंकि अब उसके पास फीस के पैसे न थे । उसने मां की जगह अनुकंपा नियुक्ति के काफी प्रयास किए, अधिकारियों से हाथ पैर जोडे़ परंतु किसी का कलेजा न पसीजा बिना रिश्वत के तो कोई काम न होता । सोनू के पास पेट भरने के लिए पैसे न थे वह रिश्वत के लिए पैसे कहां से लाता , उसने जन सुनवाई में आवेदन दिया परंतु इस देश में गरीबों की सुनवाई कहां ? सोनू ने वकीलों के यहां चक्कर लगाए परंतु वकीलों की फीस भी उसके पास न थी, उसने मंत्री और नेताओं से मिलने का प्रयास किया परंतु किसी गरीब की इतनी हैसियत कहां कि वह किसी नेता या मंत्री से मिल पाये, उनके तो चमचे ही गरीबों को दूर से भगा देते है ।
बाजार में भी प्राईवेट नौकरी ढूढ़ता रहा परंतु इस बेरोजगारी के दौर में नौकरी कहां, और फिर गरीब आदमी को देखकर कोई भी नौकरी नहीं देता । क्या पता कब चोरी कर भाग जाए ?
धीरे – धीरे सोनू के फांके दिन कटने लगे, जठराग्नि मनुष्य से क्या क्या नहीं करवा सकती , ये तो “जा के दिन फांके” वही जान सकता है । सोनू ने चोरी करना शुरू कर दिया और चोरों की एक टोली में शामिल हो गया । एक दिन चोरी करते पकडा़ गया , पुलिस ने सोनू की जोर से धुनाई की और जेल भेज दिया ।
सजा पूरी होने सोनू जेल से बाहर आया उसके दिन फिर फांके कटने लगे, वह सोचने लगा ” इससे अच्छा तो जेल में था, कम से कम दो वक्त की रोटी तो मिल जाती” । सोनू ने फिर जेल जाने के लिए चोरियां करना शुरू कर दिया वह चोरी करते पकडा़ गया इस बार जनता ने पुलिस के हवाले न कर उसकी इतनी पिटाई कि उसके हाथ पैर फिर से टूट गया, अब सोनू चोरी करना तो दूर चलने लायक न रहा ।
अब सोनू ने पेट के लिए भीख मांगना शुरू कर दिया , अब वह भीख मांगकर अपना पेट भरता ।
दिन व दिन सोनू की हालत बद से बदतर होती जा रही थी, रात का समय था सोनू फुटपाथ पर पडा़ मन ही मन अपने जीवन को कोस रहा था, वह अपने जीवन की दुर्दशा का जिम्मेदार किसे माने, वह स्वयं, पिता , प्रशासन या आसपास के समाज को जिसने कभी उसकी मदद न की । तभी एक वाहन फुटपाथ पर चढ़कर सोनू को रौंदता हुआ चला गया, और उसके प्रांण पखेरू उड़ गये ।
परंतु एक प्रश्न जीवित रह गया ” एक होनहार, होशियार छात्र को भिखारी बनाने में आखिर गलती किसकी ?”
आज भी हमारे आस पास ऐसे छात्र होगे जो होनहार, होशियार , प्रताडित एवं दयनीय स्थति में होगे। हमें, हमारे समाज, प्रशासन को जिम्मेदार बनना चाहिए कि अब कोई भी छात्र या युवा सोनू न बन पाए ।
डां.अखिलेश बघेल
दतिया ( म.प्र. )