गर न हो प्यार जिंदगी क्या है
गर न हो प्यार जिंदगी क्या है
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**2122 1212 22 (ग़ज़ल)**
क़ाफ़िया- ई स्वर रदीफ़ – क्या है
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साधना के बिना बंदगी क्या है,
वो अगर साथ ना खुशी क्या है।
कब गुजरता यहाँ भला जीवन,
गर न हो प्यार जिंदगी क्या है।
चाहिए रोज़ घोर अंधेरे,
तम न हो रात चाँदनी क्या है।
टूट जाते किये सभी वादे,
बिन असूलों ये सादगी क्या है।
कौन है यार मार मनसीरत,
छोड़ते साथ आशिक़ी क्या है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)