गर इश्क़ है…
गर इश्क़ है गुनाह तो
मुझे इश्क़ की सज़ा तू दे
ये मरज़ ही मेरा सुकून है
मुझे ज़हर दे, दवा न दे
ये नक़ाब तू हटा ज़रा
मुझे दीदार की कज़ा न दे
गर इश्क़ है गुनाह तो
मुझे इश्क़ की सज़ा तू दे
मैं चलूँ , रुकूँ , चलता चलूँ
यूँही दश्त-ओ-दर भटका करूँ
ख़लाओं में गुम हूँ कहीं
मुझे कोई भी सदा न दे
गर इश्क़ है गुनाह तो
मुझे इश्क़ की सज़ा तू दे
ये बवाल जाँ दुनियाँ तेरी
मेरी समझ मे न आ सकी
मुझे ख़ाक कर तू बिखेर दे
मुझे आरज़ी ये क़बा न दे
गर इश्क़ है गुनाह तो
मुझे इश्क़ की सज़ा तू दे