गर्मी
गांव गली घर शहर क्या हर मंजर में जल पड़ गए
इतनी गर्मी है कि जीने के लाले पड़ गए
तापमान इतना बढ़ा की तप रहा है आसमा
सूरज की नाराजगी से जिस्म काले पड़ गए
सुबह सुबह की ओस में जो खिल रहे थे बाग में
धूप के साये में आकर फूल काले पड़ गए
वसुंधरा है जल रही सूरज के प्रकोप से
चिलचिलाती धूप से पाँव में छाले पड़ गए
दाद खाज खुजली घमौरी से हो रहे बेहाल सब
सूरज का पारा चढ़ा तन भी गीले पड़ गए
हो रहे बेचैन सब न अब कहीं आराम है
या खुदा हम भी इस जालिम गर्मी के पाले पड़ गए
वेद राम