गर्मी लगे सुहानी
ग्रीष्म ऋतु लेकर आई , हाय गर्मी लगे सुहानी ।
तपती धूप , जलते वन , धरती माता अकुलानी ,
वन वन प्राणी भटक रहे , ढूंढ रहे हैं पानी ।
नदी जलाशय सूख रहे , नहीं कुओं में पानी ।
कानन छोड़कर वनचर , गांव शहर की ठानी ।।
हाय गर्मी लगे सुहानी ।
अंधड़ चले , पेड़ गिर पड़े , लू के लग रहे थपेड़े ।
धूल भरी आंधी में मानव, चल रहे टेढ़े मेढ़े ।
इसी बीच इंद्रदेव ने , बरसाया बेमौसम पानी ।
कुछ देर ही सही , हां यह पवन चले मस्तानी ।
हाय गर्मी लगे सुहानी ।
दादी कहती भीषण गर्मी, बाँदर भौंके न चिड़िया चहके ।
वन में पीले फूलों वाले , अमलतास महके-महके ।
गांव शहर और बाग बगीचे गुलमोहर खिले मनमानी ।
बागों में गूंजे भंवरे , ओम् कोयल की कूक सुहानी ।
हाय गर्मी लगे सुहानी ।
ओम प्रकाश भारती ओम््