गर्मी के आतप
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गर्मी के आतप से व्याकुल , ढूँढ़ रहे पशु पानी ।
भटक रहे हैं दर दर अपनी , किससे कहें कहानी ।।
घर के बाहर पानी भरकर , रख सकते हैं भाई ।
परमार्थ के रूप में इसकी, महिमा बहुत बताई ।।
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भरे सकोरे रखे छतों पर , पंछी पानी पीते ।
कुछ दाने गेंहूँ के खाकर , सुखमय जीवन जीते।।
तरुओं की छाया में बैठे , दुपहर काटें राही ।
रख देते कुछ लोग यहाँ भी , जल से भरी सुराही ।।