गर्मी का कहर
ए ! गर्मी तेरे बस में कुछ भी नही है,
यहाँ तेरे से कोई डरने वाला नही है।
सब दिल यहां पत्थर के बन हुए है,
यहां कोई अब पिघलने वाला नही है।।
ए ! गर्मी तू इतनी उबाल क्यो रही है
सर पर चढ़कर इतना बोल क्यो रही है।
कुछ दिनों की मेहमान है तू अब,
अपने आपे से निकल क्यो रही है।।
ए ! गर्मी तू जाड़ों में क्यों नहीं आती,
जब ठंड पड़ती है तब क्यों नही आती।
क्यो करे तेरा खैरमकदम हम सब,
जब जरूरत होती तब क्यों नही आती।।
ए ! गर्मी तू अपनी औकात में रह,
लोगो पर तू इतने कहर न ढह।
उन लोगो का भी तू ख्याल कर,
जिनके सिर पर कोई छत न है।।
ए ! गर्मी क्यो तू ढा रही है कहर,
तेरे कारण ही लोग पड़े है बीमार।
तूने ढाए जुल्म सब चीजों पर ही,
कूलर ए सी कर दिए तूने बेकार।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम