गर्मी:(कुण्डलिया छंद)
गर्मी:(कुण्डलिया छंद)
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गर्मी अब तो बढ़ रही,बढ़ते नव नव रोग।
पंखे कूलर खोजते, हुए परेशाँ लोग।
हुए परेशाँ लोग, कहाँ है ठंडी छाया।
काटे क्यों हैं पेड़, पड़ी मुश्किल में काया।
विनती करें अशोक ,प्रकृति से बरते नरमी।
शीतल मिलती छाँव, नहीं दुःख देती गर्मी।।
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अशोक शर्मा,कुशीनगर,उ.प्र.