*” गर्मियों की छुट्टी में दादी / नानी के गाँव में”*
“संस्मरण”
“गर्मी की छुट्टियां दादी/नानी के गाँव”
परीक्षा समाप्त होते ही दो महीने की लंबी छुट्टी होती हम खुशी से उछल पड़ते थे अब तो पढ़ाई से छुटकारा मिल गया हम नानी के गाँव जायेंगे।
हम पाँच भाई बहनों दो भाई तीन बहनें मैं सबसे बड़ी होने के कारण माँ के कामों में हाथ बंटाती इसलिए कभी कभी नानी के गाँव जाने को मिलता था।
वैसे माँ भी खुद चाहती थी ,कि गर्मी की छुट्टियों में हम भाई बहन मस्ती करते सारा दिन लड़ते उधम मचाते रहते ,तो माँ परेशान हो जाती । मामा जी हमें लेने आते और हम जल्दी से पैकिंग करते चार जोड़ी कपड़े पहनने का रखते कुछ अपना सामान लेकर नानी के गाँव खुशी खुशी चल पड़ते थे।
नानी के गाँव में हरे भरे खेत खलिहान ,कुआँ तालाब ,नदियाँ ,देखकर मन एकदम खुशी से फूला नही समाता था।
मौसी के बच्चों के साथ हम सभी की टोलियां बन जाती थी।नाना नानी जी मामा मामी जी भी हमारी राह तकते रहते थे परीक्षा खत्म होते ही हम आ धमकते पूरा दिन धमा चौकड़ी मचाते सुबह से उठकर तालाब के किनारे सैर पर चल देते वहाँ तालाबों में कमल पुष्प खिले हुए रहते वहां की ताजगी शुद्ध हवाओं का आनंद लेते कुछ बगीचे से आम जामुन फल तोड़ते हुए घर आते नानी के हाथों से लकड़ी के चूल्हे पर बनाया स्वादिष्ट भोजन खाते कुछ देर दोपहरी को सो जाते थे फिर घर पर ही लुडो (तिरिपासा) इमली के बीज चूड़ी या लकड़ी के टुकड़ों से चोकोर जमीन पर ही गोबर से लीपा रहता उसी पर आकृति उकेरते फिर लूडो जैसा ये खेल खेलते समय बिताते थे।
शाम को चाय नाश्ता करने के बाद गाँव की सैर करने नदी के किनारे जाकर ठंडी हवाओं में बैठते थे।
कुछ देर छुपन छुपाई ,खो खो ,कबड्डी ,काँच से बनी गोलियों से खेलते कभी कागज पेंसिल से चित्रकारी करते थे।कभी नानी के साथ मथानी से दही बिलोते मक्खन निकालते खूब मजा आता था और गोल चक्की पे खड़ा मसाला पीसते थे। धान से चावल कूटने की धनकुट्टी याने डेकी से चाँवल कूटते थे।
इन सभी कामों को करने में बहुत मजा आता था क्योंकि शहर में सीमित दायरों में ही सिमट कर रह जाते हैं कोई रोक टोक लगाने वाला भी कोई नही सभी लाड दुलार करते जो भी कहते तुंरत मिल जाता था। जीवन का असली आनंद गाँव में ही मिलता है।
रात को छत पर बड़ी दरी लंबा बिस्तर बिछा जब साथ साथ सोते हुए मस्ती करते थे चाँद सितारो को निहारते अनगिनत तारों की गिनती करते लेकिन बस गिनते ही रह जाते तारे आंखों से ओझल हो जाते फिर नाना जी किस्से कहानियाँ सुनाते हम खुली छत पर ही सो जाते न कूलर न पँखे की जरूरत पड़ती थीं। खुले आसमान के नीचे छत पर सुबह आराम से उठते थे जब सूरज की रोशनी आंखों पे पड़ती थी और नानी कहती अब उठ भी जाओ ……चाय बन गई है ठंडी हो जाएगी।
हमारे नाना जी गाँव के बहुत बड़े पंडित जी थे जो बड़े होटलों में सुबह पूजन करने जाते थे तो वहाँ से रोज ताजी मिठाईयां गर्म नाश्ता ले आते थे होटल का मैनेजर भी बहुत कुछ खाने के लिए नई नई चीजें दे देता था अपने नातिन के लिए ले जाइए।गाँव में रहने वाले बहुत ही आदर भाव सम्मान करते हैं जो नाना जी को सम्मान देते वही हमें भी पैर छूकर चरण स्पर्श करते थे और हम इन्हें ढेर सारा आशीर्वाद दे खुश हो जाते थे।
एक बार हम तीनों बहन नानी के गाँव ननिहाल गए उस समय गाँव की सड़कों पर कार्य चल रहा था तो मोटर गाड़ी मार्ग बंद हो गया था। कोई साधन उपलब्ध नही होने के कारण मामा जी ने हमें 5 किलोमीटर दूर पैदल यात्रा करवा दिया।
कच्चे रास्तों पर चलते जा रहे थे गाँव की धूल भरी पगडंडियों पे चलते खेत खलिहानों का दृश्य देख अवलोकन करते हुए आखिर नानी के घर गाँव पहुँचे। जैसे ही घर पहुँचे
नानी हमारी हालात देख मामा जी पर बरस पड़ी शहर के बच्चों को इतनी दूर कच्चे रास्तों पर चलाते हुए ले आया।कोई बैलगाड़ी का इंतजाम कर बैठा कर ले आते …..
नानी ने बहुत कुछ खाने में बनाया था हाथ मुँह धोकर कुछ खाया मटके का ठंडा पानी पीकर आराम किया सारी थकान दूर हो गई थी।
नानी हर रोज नए नए पकवान व्यंजन बनाकर खिलाती कभी चक्की पर पिसा हुआ सत्तू कभी बेल का ताजा शर्बत बेल के ऊपरी छिलके में पानी डालकर पीते थे। सूखे हुए बेर का मुरब्बा गुड़ मिलाकर बनाती बेर को कूटकर उसका चूर्ण मसाला पाउडर डालकर कुछ लकड़ी में खट्टा मीठा स्वादिष्ट व्यंजन बनाकर हमे खिलाती थी।
हम सभी बच्चे मिलकर खाते पीते मस्ती करते उधम मचाते हुए गाँव में रहने का लुत्फ उठाते थे।
कुछ दिन गाँव में रहने के बाद जब हम घर जाने की बारी आती तो हम जाने की तैयारी करते तो मामा जी हमें हाट बाजार दुकानों पर ले जाते हमारी मनपसंद चीजों लेकर देते थे और हमारी शहर की ओर जाने की विदाई होने लगती थी।हम नानी से गले मिलकर खूब रोती मामा मामी जी भी उदास हो जाते थे।
अब तो अगले साल ही गर्मी की छुट्टियों में ही मुलाकात होगी। तब तक हमारी पढ़ाई लिखाई फिर से शुरू हो जायेगी हम भी व्यस्त हो जायेंगे।
आज वर्तमान स्थिति में तो घर पर ही रहकर गर्मी की छुट्टियों का आनंद लेते हैं।नानी के घर गाँवो जाने का सुखद अनुभव सिर्फ भूली बिसरी सुनहरी यादों में ही संजोये रखा है।
शशिकला व्यास✍