गर्मियों की छुट्टियां
गर्मियों की छुट्टियां
इसका इंतजार साल भर रहता था
नाना के घर जाने को जो मिलता था
और फिर छतों पर सोना,तारे गिनना
बारिश होने पर चादर लपेटना
सूरज का चढ़ना और हमारा जागना
वो बर्फ़ के गोले,वो नहर में नहाना
कुएं से पानी लाना,सत्तू चुपके से खाना
वो बड़ा सा फल जो सबमें बांटा जाता
छाछ का ग्लास जो पूरा ना मिल पाता
आम कच्चे जो छत पर सुखाते
हम बच्चें जिसे चोरी से खाते
वो नानी की चारपाई
जिसने वारिश में टांग थी उठाई
उसे कूद कूद कर सीधा करते
तब हमें, फिर कुछ रुपए मिलते
कितनी ही यादों का पिटारा हैं
जो गर्मी आते ही याद आया हैं
अब तो मनाली,मसूरी बच्चें जाते है
काशी, मथुरा का टूर बनाते हैं
पर असल में असली वाली मस्ती
मिस कर जाते हैं……