गर्भ से बेटी की पुकार
गर्भ में पल रही बेटी
बोल रही थी बार-बार।
माँ-पापा मुझे लेने देना
अपने जीवन का आकार।
मैं भी हूँ तेरे घर
की ही एक चिराग।
जलने से पहले न तुम
मुझे बुझा देना।
मुझको भी इस दुनियाँ मे
अपनी रोशनी फैलाने देना।
मत छीनना मुझ से इस दुनियाँ
में आने का अधिकार।
माना बेटा नहीं हूँ तेरा,
पर बेटी तो तुम्हारी हूँ ।
मैं भी तुम्हारे ही बीज से
उत्पन हुई हूँ।
ऐसे न मेरा तुम कत्ल करो ।
मुझको भी जीने दो।
जीवन प्रदान करो ।
मुझको भी खिलने दो।
मैं भी तेरा ही अंश हूँ।
हूँ तेरा ही छाया।
तेरा खून ही तो,
मेरे अंदर हैं समाया।
क्या आपको इस अजन्मी बेटी
का दर्द का एहसास नहीं है!
क्या आपको मेरी कराह
सुनाई देता नही हैं!
सच कहना क्या मेरे लिए
थोड़ा भी प्यार नही है।
क्या मेरे मरने का दर्द
आपको थोड़ा भी नहीं है।
~अनामिका