गर्भस्थ बेटी की पुकार
मत दे मुझे जन्म ए मां
गर्भ में ही मर जाने दे,
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का
ना तू झूठा नारा दे मां,
धरती पर लाकर मुझे
क्यों दरिंदों का शिकार बनाए
नाचेंगे मेरे जिस्म को वो
जिंदा जी आग से जलाएं,
तू वोट देकर नेता बनाए जिसे
अपनी सुरक्षा करने को,
वह छूट दे बलात्कारियों को
उनकी हवस मिटाने को,
नियम सविधान सबके लगा ताला
नेताओं के घर चाबी इस पेटी की,
चुपचाप तमाशा देखेंगे वे
आबरू उतरी नहीं इनकी बेटी की,
नोटबंदी कर दे रातों-रात
सर्जिकल स्ट्राइक भी संभव है,
धारा 370 भी हट जाए राज में
और राम मंदिर का निर्माण भी,
तो क्यों रोए मां बाप बेटी के
क्यों हौसले बुलंद बलात्कारियों के,
क्यों नहीं कानून बनता इनका
सजा मिले इनको घंटों में,
क्यों तड़पे बेटी सड़कों पर
दरिंदे खाएं जेल में मटन पनीर,
क्या सच में मर गई हमारी संस्कृति
क्यों खत्म हुआ आलाकमान का जमीर,
आदमी बन गया भूखा जानवर
खूंखार भेड़िया भी इनसे बेहतर,
इज्जत करें कम से कम अपनी प्रजाति की
खा गया आदमी बेटी अपनी ही जाति की,
यह हालात नहीं अच्छे अब
विनाश होगा सृष्टि का,
बहुत तड़पाया है ए मानस तुमने
श्राप है आज इस बेटी का !