गर्भवती हथिनी के हत्यारे
क्या गलती थी उसकी, क्या थी उसकी खता
मार दिया उस बेजुबान को ,किस नर्क में देगा खुदा जगह ।
मानवता को मार दिए हो इंसानियत पर वार किए हो
गर्भवती हथनी को तुम तड़पा तड़पा कर मार दिए हो ।
प्रकृति पर बराबर उसका भी हिस्सा, क्यों तुम ना इंसाफ किए हो
खाने का तुम लालच देकर ,मां की ममता से खिलवाड़ किए हो ।
जो दर्द उसको मिला तुम उसका आधा भी ना झेल सकोगे
फिर क्या सोच ,तुम यह पाप किए हो ।
मानवता को सूली पर लटका कर
क्या सोचा अपने वंश का ऊंचा नाम किए हो ।
निर्मल दिल ,बेजुबान को मार दिए हो
पेड़ काट ,जंगल नोच के हर बार बुरा काम किए हो ।
प्रकृति मां कि दिन रात जो पूजा करते
उनका ही सिंघार किए हो ।
पढ़े-लिखे तुम गवार हो
माता समान पर अत्याचार किए हो ।
जिस बम से मारा है तुमने, क्या अब खुशी में उसे जला पाओगे
कोख़ उजाड़ी बेजुबान की, खुद का घर कैसे बसाओगे ।
ए मेरे भारत के बंदों, दिल ना किसी का दुखाओ रे
शांति प्रेम त्याग से ,इस देश को रोशन बनाओ रे ।
एक जिस्म दो जान तो चली गई ,वह ना लौट कर आएगी
प्रण करो ,वादा करो ,अब इस देश में ,किसी बेजुबान की जान फिर न जाएगी ।
हर्ष मालवीय
बीकॉम कंप्यूटर द्वितीय वर्ष
एनएसएस वॉलिंटियर
शासकीय हमीदिया कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय