गर्दिश में मेरे हालात
गर्दिश में खुद के हालात को मानता हूं, कि तू मेरे शहर में है, और चाहकर के भी तुझसे मुलाकात नहीं हो पाई है। ऐसा लगता है कि कोई अपना है, जिसके करीब होकर के भी करीब ना होने से,
जिंदगी में सिर्फ रुसवाई ही रुसवाई है।
ये इश्क अब ऐसे मोड़ पर आ चुका है कि तुझे, अपना बनाने की ख्वाहिश भी नहीं रही है।
मैं आज अकेला चल तो रहा हूं भीड़ भरे शहर में अपने लेकिन, मीलों तक सफर में सिर्फ, तन्हाई ही तनहाई है।