गरीब हैं लापरवाह नहीं
गरीब हैं लापरवाह नहीं
रूखी-सूखी जो मिले पेट भर लेते हैं,
जी लेते दो घड़ी दो घड़ी मर लेते हैं।
दौर है बेइमानी का बेशक आज ,
हम ईमान से गुज़ारा कर लेते हैं।।
हमारी करता यहाँ कोई परवाह नहीं।
हम गरीब हैं लापरवाह नहीं।।
रूप न सही संवर लेते हैं,
खुदा से ज़रूर डर लेते हैं।
तन ढकने के लिए कपड़ा न सही,
पतों से भी गुज़ारा कर लेते हैं।
ख्वाहिशें पालते बेपनाह नहीं।
हम गरीब हैं लापरवाह नहीं।।
हम हमेशा नज़र अंदाज़ किए जाते हैं,
मच्छरों की तरह मसल दिए जाते हें।
कायदे कानून नहीं बनते धनवानों के लिए,
और गरीब हमेशा कुचल दिए जाते हैं।
अब अमीर होने की चाह नहीं।
हम गरीब हैं लापरवाह नहीं।।
सूरज विपरीत दिशा में अस्त न हो,
कोई पाप गुनाह में व्यस्त न हो।
दर्द मिले यहाँ लाख बेशक,
दुआ है गरीबी के दर्द से कोई ग्रस्त न हो।
सो जाते भूखे; लूटमार से करते निर्वाह नहीं।
हम गरीब हैं लापरवाह नहीं।।
सुशील भारती, नित्थर, कुल्लू (हि.प्र.)